ashutosh's name

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भावनाओ कि निर्मम हत्या से उपजी विचारों की अनुपम अभिव्यक्ति से दुनिया को जो मुर्दा दिखा वही कविता है। सीने में तमाम तक़लीफ़ों की कबरगाह में से आज भी जैसे कोई प्रेतात्मा प्रश्न पूछ रही है कि तेरे ख्वाब कहाँ हैं, जो तूने देखे थे ? मैं कब्र देख कर फिर से हंस देता हूँ।


मेरी मज़ार पे आना तुम एक पल के लिए

Posted by ashutosh on December 9 2009, 12:16pm

Categories: #ghazals & shayari

मेरी मज़ार पे आना तुम एक पल के लिए
मेरे घर को भी सजाना तुम एक पल के लिए

यहीं बनाऊंगा ज़न्नत मैं दो ज़हानो की
गरीबखाने में आना तुम एक पल के लिए

कहीं खो जायेंगे अँधेरे उम्र भर के लिए
चराग़ दिल का जलाना तुम एक पल के लिए

कई बरस से पड़ा हूँ मैं कैदखाने में
रिहाई मुझको दिलाना तुम एक पल के लिए

हर एक पल में हो शामिल प्यार सदियों का
एक ऐसी शाम को लाना तुम एक पल के लिए

तड़प रहा हूँ तन्हाई में एक ज़माने से
मुझे गले से लगाना तुम एक पल के लिए

तुझे समझूँगा सजन अपना मैं सदा के लिए
मुझे महबूब बनाना तुम एक पल के लिए

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Comment on this post
E
<br /> ashutosh ji, hum yenhi aas-paas batakthe rehthe hain..kuch likhe ki koshish mein :)<br /> ek pal ke liye bi woh aajye tho kya baat hai.khoob.<br /> <br /> <br />
Reply
S
<br /> bahut badiya ashutosh ji... aise hi achha achha likhte rahein...<br /> <br /> <br />
Reply
A
<br /> Shukriya Mere Bhaai Shailesh<br /> <br /> <br />

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