ashutosh's name

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भावनाओ कि निर्मम हत्या से उपजी विचारों की अनुपम अभिव्यक्ति से दुनिया को जो मुर्दा दिखा वही कविता है। सीने में तमाम तक़लीफ़ों की कबरगाह में से आज भी जैसे कोई प्रेतात्मा प्रश्न पूछ रही है कि तेरे ख्वाब कहाँ हैं, जो तूने देखे थे ? मैं कब्र देख कर फिर से हंस देता हूँ।


निशब्द

Posted on June 4 2020, 00:34am

कब्र के नीचे दबा दिया है

फिर भी अंदर इक चिंगारी

सुलग रही है धीमे धीमे

चूल्हे का ठंडा उपला हूँ

फूंक तो मारो, सुलग उठूँगा

धधक रहा हूँ धीमे धीमे

सीख मिली है कीमत दे के

अरमानो का खून किया है

सिसक रहा हूँ धीमे धीमे

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