कब्र के नीचे दबा दिया है
फिर भी अंदर इक चिंगारी
सुलग रही है धीमे धीमे
चूल्हे का ठंडा उपला हूँ
फूंक तो मारो, सुलग उठूँगा
धधक रहा हूँ धीमे धीमे
सीख मिली है कीमत दे के
अरमानो का खून किया है
सिसक रहा हूँ धीमे धीमे
भावनाओ कि निर्मम हत्या से उपजी विचारों की अनुपम अभिव्यक्ति से दुनिया को जो मुर्दा दिखा वही कविता है। सीने में तमाम तक़लीफ़ों की कबरगाह में से आज भी जैसे कोई प्रेतात्मा प्रश्न पूछ रही है कि तेरे ख्वाब कहाँ हैं, जो तूने देखे थे ? मैं कब्र देख कर फिर से हंस देता हूँ।
कब्र के नीचे दबा दिया है
फिर भी अंदर इक चिंगारी
सुलग रही है धीमे धीमे
चूल्हे का ठंडा उपला हूँ
फूंक तो मारो, सुलग उठूँगा
धधक रहा हूँ धीमे धीमे
सीख मिली है कीमत दे के
अरमानो का खून किया है
सिसक रहा हूँ धीमे धीमे