भावनाओ कि निर्मम हत्या से उपजी विचारों की अनुपम अभिव्यक्ति से दुनिया को जो मुर्दा दिखा वही कविता है। सीने में तमाम तक़लीफ़ों की कबरगाह में से आज भी जैसे कोई प्रेतात्मा प्रश्न पूछ रही है कि तेरे ख्वाब कहाँ हैं, जो तूने देखे थे ? मैं कब्र देख कर फिर से हंस देता हूँ।
दौड़ते दौड़तेजब कहीँ नहीं पहुँचातो थक गया मैंनिडरता भी मेरे साथ साथ दौड़ रही थीलेकिन वो रास्ते मेंन जाने कहाँ पीछे रह गईशायद वो भी थक गई होगीजब देखा निडरता साथ नहीं हैतो बहुत डर गया मैंकुछ गलत नहीं किया थाफिर भी डर गया मैंअब सोचता हूँ कोई गोद में उठा केमुझे...