भावनाओ कि निर्मम हत्या से उपजी विचारों की अनुपम अभिव्यक्ति से दुनिया को जो मुर्दा दिखा वही कविता है। सीने में तमाम तक़लीफ़ों की कबरगाह में से आज भी जैसे कोई प्रेतात्मा प्रश्न पूछ रही है कि तेरे ख्वाब कहाँ हैं, जो तूने देखे थे ? मैं कब्र देख कर फिर से हंस देता हूँ।
जीवन का सन्दर्भ खत्म हैस्नेहों का पर्व खत्म है।उलझे धागे बिखरे पन्ने ,रिश्तों का गन्धर्व खत्म है। समझौतों को बेंच रहे सब।लिए पोटली अरमानों की,बाँझ खेत को सेंच रहे सब।पुष्पलता सब बाण बन गए।चुभते धसते शूल कटीले ,वृक्षों के सोपान बन गए।