भावनाओ कि निर्मम हत्या से उपजी विचारों की अनुपम अभिव्यक्ति से दुनिया को जो मुर्दा दिखा वही कविता है। सीने में तमाम तक़लीफ़ों की कबरगाह में से आज भी जैसे कोई प्रेतात्मा प्रश्न पूछ रही है कि तेरे ख्वाब कहाँ हैं, जो तूने देखे थे ? मैं कब्र देख कर फिर से हंस देता हूँ।
कब्र के नीचे दबा दिया है फिर भी अंदर इक चिंगारी सुलग रही है धीमे धीमे चूल्हे का ठंडा उपला हूँ फूंक तो मारो, सुलग उठूँगा धधक रहा हूँ धीमे धीमे सीख मिली है कीमत दे के अरमानो का खून किया है सिसक रहा हूँ धीमे धीमे
अब जब सावन खत्म हो गया है तो इस मसले पर भी चर्चा अहम हो जाती है कि चिकन शाकाहारी है या मांसाहारी - दो दिन तक चलने वाले इस महत्वपूर्ण चिंतन बैठक में श्री राजेन्द्र जी सचान ने अध्यक्षता की , एवम उपाध्यक्ष श्री बिपिन अग्निहोत्री जी को बनाया । बैठक के अन्य...
दौड़ते दौड़तेजब कहीँ नहीं पहुँचातो थक गया मैंनिडरता भी मेरे साथ साथ दौड़ रही थीलेकिन वो रास्ते मेंन जाने कहाँ पीछे रह गईशायद वो भी थक गई होगीजब देखा निडरता साथ नहीं हैतो बहुत डर गया मैंकुछ गलत नहीं किया थाफिर भी डर गया मैंअब सोचता हूँ कोई गोद में उठा केमुझे...
हमको करते मिस नहीं,कइसन हो तुम तात ?आओ मिल बैठे पिये,हाला दिन और रात ।हाला दिन और रातकरें फिर मीठी बतियाँ,बहुत गए दिन मिली नहींमितरों से अँखिया ।मितरों के संग खूब चलेठेके के तीरे,चखने में काटेंगेताजे ककड़ी खीरे ।ककड़ी खीरे काजूचखने खूब तलेंगे,डिस्पोजल दारू...
न कारवाँ न हमसफ़र , तन्हाई थी मेरी नज़र तन्हाई बस मेरी नज़र । मंजिल से भी अनजान था कुछ था तो वो सुनसान था कुछ था तो बस सुनसान था सेहरा को फिर रोते सुना उफ हाय क्या तूने चुना उफ हाय क्या तूने चुना सड़ गल चुका बस बास है ये हौसलों की लाश है मेरे हौंसलों की लाश...
जीवन का सन्दर्भ खत्म हैस्नेहों का पर्व खत्म है।उलझे धागे बिखरे पन्ने ,रिश्तों का गन्धर्व खत्म है। समझौतों को बेंच रहे सब।लिए पोटली अरमानों की,बाँझ खेत को सेंच रहे सब।पुष्पलता सब बाण बन गए।चुभते धसते शूल कटीले ,वृक्षों के सोपान बन गए।
हम सब लोग लगभग बचपन से ही अपने सुनहरे भविष्य की कच्ची कल्पना करने लगते हैं l और क्लास से कॉलेज तक आते आते हमें सपने ज्यादा स्पष्ट दिखने लगते हैंl एक अच्छी जॉब, अच्छा घर, गाड़ी, बीवी-बच्चेl क्या यहाँ शुरुआत कुछ गलत नहीं हुई है. एक अच्छी नौकरी। एक अच्छी...
ऊफ़्फ़ हे! प्रेयसी तेरा इंतज़ार आज भी है समतल सौंधा उबड़ खाबड़ गड्ड मड्ड सा उलझा प्यार आज भी है , हे! प्रेयसी तेरा इंतज़ार आज भी है। थोड़ा नीरस थोड़ा सूखा सोये मन में प्रेम वयार आज भी है , हे! प्रेयसी तेरा इंतज़ार आज भी है। हाथ हथेली झूले पौधे तुम और मैं स्वप्न...
दिल के ज़ज्बात समेट कर, पूरी क़ायनात समेट कर मैं लौट आया फिर वही से, अपने हालात समेट कर। सज़दे सुबह और शाम को मुहब्बत के कैसे कैसे ? कभी कन्धों पे झुक कर, कभी घुटनों से बैठ कर। कुछ फ़र्क बाक़ी है अब भी, फ़रेब में और अपनों में, ये अनुभव भी कड़वा है मेरा, मेरे...