हमने दर्द को रिसते देखा है दरारों से
हमने बरसात गुजारी है इन दीवारों से
नाव बढ़ न सकी आगे कनारों से
इंसानियत तौलते हैं जो शब्द के औजारों से
ज़िन्दगी कैसे बचाएं मौत के खरीदारों से
खतरा हमको है घर के असरदारों से
भावनाओ कि निर्मम हत्या से उपजी विचारों की अनुपम अभिव्यक्ति से दुनिया को जो मुर्दा दिखा वही कविता है। सीने में तमाम तक़लीफ़ों की कबरगाह में से आज भी जैसे कोई प्रेतात्मा प्रश्न पूछ रही है कि तेरे ख्वाब कहाँ हैं, जो तूने देखे थे ? मैं कब्र देख कर फिर से हंस देता हूँ।