ashutosh's name

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भावनाओ कि निर्मम हत्या से उपजी विचारों की अनुपम अभिव्यक्ति से दुनिया को जो मुर्दा दिखा वही कविता है। सीने में तमाम तक़लीफ़ों की कबरगाह में से आज भी जैसे कोई प्रेतात्मा प्रश्न पूछ रही है कि तेरे ख्वाब कहाँ हैं, जो तूने देखे थे ? मैं कब्र देख कर फिर से हंस देता हूँ।


खामोश जिस्म में भी जान अभी बाकी है

Posted by ashutosh on December 24 2009, 15:16pm

Categories: #ghazals & shayari

 

 

 

खामोश  जिस्म  में  भी  जान  अभी  बाकी  है
तेरी  वफाओं  का  निशान  अभी  बाकी  है 

थम  गयी  दिल  में  हरारत  जो  तेरे  दम  से  थी
बुझे  से  दिल  में  भी  अरमान  अभी  बाकी  है

हिल  गया  मेरा  आशियाना  इन  थपेड़ो  से
आने  वाला  बड़ा  तूफ़ान  अभी  बाकी  है

मिट  गया  सब  जो  मुहब्बत  में  था  पाया  मैंने
फिर  भी  कई  और  इम्तिहान  अभी  बाकी  है

हर  सज़ा  रूबरू  पायी  है  उस  सितमगर  से
क़त्ल  को  मेरा  पर  फ़रमान  अभी  बाकी  है

हर  तरफ  ज़ख्म  ही  पाए  हैं  जीते  जी  हमने
फिर  भी  होठों  पे  ये  मुस्कान  अभी  बाकी  है 

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