कल की रात सबसे हसीन रात थी
उसने चूमा मेरे गुलाबी होठों को
एक एहसास एक ज़ुम्बिश
रोम रोम में सिहरन
और वो घबराहट भी
पता नहीं कैसी
मैं अन्दर से अभिभूत थी
और एक अनजाना डर भी
पता नहीं क्या था वो
जो असीम आकाश में ले जा रहा था मुझे
पर मेरे पैर जमीं पर ही थे
शायद प्रथ्वी के गुरुत्वाकर्षण ने रोक रखा था मुझे
नहीं तो खो जाती अनन्त अंतरिक्ष में
मन ना था आने का वापस
रुक जाना चाहती थी
उन पलों में
सदा के लिए
सर्दी में वर्फ थी मैं
या तप रही थी झुलसती गर्मी में
होश ना था
या मदहोश थी
पता नहीं
सदियों की तृप्ति
आज चाँद मिल गया था जिद्दी बालक को
रोमांच कुछ पल के लिए अपने चरम पे
हवा थमी सी बस दिल धड़क रहा था
जैसे आज बाहर आना चाहता हो
शुक्रिया कहने मुझे
पर मैं कहा कुछ सुन पा रही थी
अदभुत था
वो मेरा पहला चुम्बन