ashutosh's name

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भावनाओ कि निर्मम हत्या से उपजी विचारों की अनुपम अभिव्यक्ति से दुनिया को जो मुर्दा दिखा वही कविता है। सीने में तमाम तक़लीफ़ों की कबरगाह में से आज भी जैसे कोई प्रेतात्मा प्रश्न पूछ रही है कि तेरे ख्वाब कहाँ हैं, जो तूने देखे थे ? मैं कब्र देख कर फिर से हंस देता हूँ।


फाड़ा है उसने ख़त को कुछ इस बदतरी के साथ

Posted by ashutosh on August 28 2009, 19:08pm

Categories: #ghazals & shayari

फाड़ा है उसने ख़त को कुछ इस बदतरी के साथ
दामन है जैसे मेरा अब आया हो उसके हाथ

 

वो आ के बस बता दें जरा इतना सा सबब
जीते हैं कैसे इतनी भरी नफरतों के साथ

 

हमने तो सिखाई न कभी तुमको ये फरेब
फिर मुझको बताओ ये सबक सीखे किसके साथ

 

अब कहते हो तुमको नहीं सूरत है ये बर्दाश्त
तुम रात दिन हर पल को ही जीते थे जिसके साथ

 

कैसे तुझे मैं याद दिलाऊं तेरा कलाम
रहते हो किसके साथ और कसमें थीं किसके साथ



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