toh kai chasme bhi toh pighalte hain
ye seher hai badhaaliyon ka
jyada na badao aasteen apni
ye duniya aisi hi hai dost
zamane ko kyu dosh dete ho
ek hi toh raavan tha us yug me
maana ki jamaana kharab hai
तो कई चश्मे भी तो पिघलते हैं
ये शहर है बदहालियों का
यहाँ चीटियों के भी पर निकलते हैं
ज्यादा ना बढाओ आस्तीन अपनी
यहाँ साँप और अजगर भी निकलते हैं
ये दुनिया ऐसी ही है दोस्त
यहाँ दिल में दर्द के समन्दर भी निकलते हैं
ज़माने को क्यूँ दोष देते हो
तुम्हारे अन्दर ही कितने डर निकलते हैं
एक ही तो रावण था उस युग में
यहाँ सब के दस दस सर निकलते हैं
माना की ज़माना ख़राब है
पर हम अब भी सरे रात अक्सर निकलते हैं