ashutosh's name

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भावनाओ कि निर्मम हत्या से उपजी विचारों की अनुपम अभिव्यक्ति से दुनिया को जो मुर्दा दिखा वही कविता है। सीने में तमाम तक़लीफ़ों की कबरगाह में से आज भी जैसे कोई प्रेतात्मा प्रश्न पूछ रही है कि तेरे ख्वाब कहाँ हैं, जो तूने देखे थे ? मैं कब्र देख कर फिर से हंस देता हूँ।


हे! प्रेयसी तेरा इंतज़ार आज भी है

Posted by ashutosh on September 10 2014, 19:14pm

Categories: #ghazals & shayari

 

ऊफ़्फ़ 

हे! प्रेयसी तेरा इंतज़ार आज भी है 

समतल सौंधा
उबड़ खाबड़ 
गड्ड मड्ड सा 
उलझा प्यार आज भी है ,
हे! प्रेयसी तेरा इंतज़ार आज भी है। 
 
थोड़ा नीरस 
थोड़ा सूखा  
सोये मन में 
प्रेम वयार आज भी है ,
हे! प्रेयसी तेरा इंतज़ार आज भी है। 
 
हाथ हथेली 
झूले पौधे 
तुम और मैं 
स्वप्न हज़ार आज भी हैं 
हे! प्रेयसी तेरा इंतज़ार आज भी है।

रात नशीली
रंग गुलाबी 
आधा चाँद 
वो उपकार आज भी है 
हे! प्रेयसी तेरा इंतज़ार आज भी है।

हे! प्रेयसी तेरा इंतज़ार आज भी है
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